Wednesday 27 May 2020

महामृत्युंजय मंत्र ।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्मति ने पुत्र की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पूर्ति के लिए दो विकल्प दिए। पहला- अल्पायु बुद्धिमान पुत्र दूसरा-दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र।

इस पर ऋषि मृकण्डु ने अल्पायु बुद्धिमान पुत्र की कामना की। जिसके परिणामस्वरूप मार्कण्डेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनका जीवन काल 16 वर्ष का ही था। वे अपने जीवन के सत्य के बारे में जानकर भगवान शिव की पूजा करने लगे। मार्कण्डेय जब 16 वर्ष के हुए तो यमराज उनके प्राण हरने आए। वे वहां से भागकर काशी पहुंच गए। यमराज ने उनका पीछा नहीं छोड़ा तो मार्कण्डेय काशी से कुछ दूरी पर कैथी नामक गांव में एक मंदिर के शिवलिंग से लिपट गए और भगवान शिव का अह्वान करने लगे।

मार्कण्डेय की पुकार सुनकर देवों के देव महादेव वहां प्रकट हो गए। भगवान शिव के तीसरे नेत्र से महामृत्युंज मंत्र की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने मार्कण्डेय को अमरता का वरदान दिया, जिसके बाद यमराज वहां से यमलोक लौट गए।

महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है।

मंत्र निम्न प्रकार से है
एकाक्षरी मंत्र 👉 ‘हौं’ ।
त्र्यक्षरी मंत्र    👉 ‘ॐ जूं सः’।
चतुराक्षरी मंत्र 👉‘ॐ वं जूं सः’।
नवाक्षरी मंत्र   👉 ‘ॐ जूं सः पालय पालय’।
दशाक्षरी मंत्र  👉 ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’।

(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

वेदोक्त मंत्र 👉 
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-

ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥

इस मंत्र में 33 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी कारण से इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।

मंत्र विचार - इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।

शब्द बोधक
‘त्र’ ध्रुव वसु 
‘यम’ अध्वर वसु
‘ब’ सोम वसु 
‘कम्‌’ वरुण
‘य’ वायु 
‘ज’ अग्नि
‘म’ शक्ति 
‘हे’ प्रभास
‘सु’ वीरभद्र 
‘ग’ शम्भु
‘न्धिम’ गिरीश 
‘पु’ अजैक
‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य 
व’ पिनाक
‘र्ध’ भवानी पति 
‘नम्‌’ कापाली
‘उ’ दिकपति 
र्वा’ स्थाणु
‘रु’ भर्ग 
‘क’ धाता
‘मि’ अर्यमा 
‘व’ मित्रादित्य
‘ब’ वरुणादित्य 
‘न्ध’ अंशु
‘नात’ भगादित्य 
‘मृ’ विवस्वान
‘त्यो’ इंद्रादित्य 
‘मु’ पूषादिव्य
‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य 
‘य’ त्वष्टा
‘मा’ विष्णुऽदिव्य 
‘मृ’ प्रजापति
‘तात’ वषट

इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।

शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-

शब्द शक्ति 👉 ‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘म’ मंगल ‘ब’ बालार्क तेज
‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘जा’ जालंधरेश ‘म’ महाशक्ति
‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर
‘गं’ गणपति का बीज ‘ध’ धूमावती का बीज
‘म’ महेश ‘पु’ पुण्डरीकाक्ष
‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण ‘व’ वाकिनी
‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी
‘उ’ उमा ‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति
‘रु’ रूप तथा आँसू ‘क’ कल्याणी
‘व’ वरुण ‘बं’ बंदी देवी
‘ध’ धंदा देवी ‘मृ’ मृत्युंजय
‘त्यो’ नित्येश ‘क्षी’ क्षेमंकरी
‘य’ यम तथा यज्ञ ‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश
‘मृ’ मृत्युंजय ‘तात’ चरणों में स्पर्श

यह पूर्ण विवरण ‘देवो भूत्वा देवं यजेत’ के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ। 

मंत्र निम्नलिखित हैं

तांत्रिक बीजोक्त मंत्र

ॐ भूः भुवः स्वः। 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। 
स्वः भुवः भूः ॐ ॥

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। 
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।

महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। 
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे। अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
14. मिथ्या बातें न करें।
15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। 

निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है।
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

॥ इति महामृत्युंजय जप विधि ॥ 
।।जय भोले नाथ।। हर हर महादेव।।

(साभार - श्री कृष्ण भारद्वाज)

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