रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर: : राम ईश्वरो यस्य सः रामेश्वरः
प्रभु रामेश्वरम् के ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने रामसेतु बनाने से पहले की थी। जब महावीर हनुमान ने उनके द्वारा दिए गए शिवलिंग के इस नाम का मतलब पूछा तो भगवान् राम ने शिव जी के नवीन स्थापित ज्योतिर्लिंग के स्वयं द्वारा दिए इस नाम की व्याख्या में कहा -
रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर:
मतलब जो श्री राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं.
बाद में जब रामसेतु बनने की कहानी भगवान् शिव, माता सती को सुनाने लगे तो बोले के प्रभु श्री राम ने बड़ी चतुराई से रामेश्वरम नाम की व्याख्या ही बदल दी। माता सती ने पूछा, ऐसा कैसे ? तो देवाधिदेव महादेव ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए उच्चारण में थोड़ा सा फ़र्क बताया -
राम ईश्वरो यस्य सः रामेश्वरः
यानि श्री राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।
ब्रह्माजी ने आकर कहा - रामेश्वर का सही अर्थ मैं करता हूँ -
"रामश्चासौ ईश्वरश्च, रामेश्वरः"
जो राम हैं वो ईश्वर है, जो ईश्वर है वो शंकर है, नाम भिन्न है लेकिन है तो एक ही, राम ही कृष्ण हैं, कृष्ण ही नारायण् है और वही शिव हैं।
जब विष्णुजी ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो अपने इष्ट के बाल रूप के दर्शन और उनकी लीला को देखने के लिए शिवजी ने जोगी रूप बनाया।
श्रीकृष्ण के जन्म के समय श्रीशंकरजी समाधि में थे। जब वह जागृत हुए तब उन्हें मालूम हुआ कि श्रीकृष्ण ब्रज में बाल रूप में प्रकट हुये हैं। इससे शंकरजी ने बालकृष्ण के दर्शन के लिए जाने का विचार किया। शिवजी ने जोगी (साधु) का स्वाँग (रूप) सजाया और
‘श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय’
कीर्तन करते हुए वे नन्दगाँव में माता यशोदा के द्वार पर आकर खड़े हो गए।
‘अलख निरंजन’ शिवजी ने आवाज लगायी। आज परमात्मा कृष्ण रूप में प्रत्यक्ष प्रकट हुए हैं। शिवजी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लिए आए हैं। यशोदामाता को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं। उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा दी। दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा। शिवजी ने दासी से कहा कि,
‘मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं। इससे मैं उनके दर्शन के लिए आया हूँ। मुझे लाला के दर्शन करने हैं।’ (ब्रज में शिशुओं को लाला कहते हैं, व शैव साधुओं को जोगी कहते हैं)। दासी ने भीतर जाकर यशोदामाता को सब बात बतायी। यशोदाजी को आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाहर झाँककर देखा कि एक साधु खड़े हैं। यशोदामाता ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि, ‘महाराज आप महान पुरुष लगते हैं। क्या भिक्षा कम लग रही है ? आप माँगिये, मैं आपको वही दूँगी पर मैं लाला को बाहर नहीं लाऊँगी। आज भी नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां शिवजी श्रीकृष्ण के दर्शन की आशा में बैठे हैं।
माया (एक बुजुर्ग महिला) के समझाने पर माता यशोदा ने बाल श्रीकृष्ण के दर्शन करवा दिये। श्रीकृष्ण और शिवजी की आँखें जब चार हुयीं तब शिवजी को अति आनंद हुआ। शिवजी की दृष्टि पड़ी तो बालकृष्ण हँसने लगे।
शिवजी योगीश्वर हैं और श्रीकृष्ण योगेश्वर हैं। श्रीकृष्ण प्रवृत्ति धर्म समझाते हैं, शिवजी निवृत्ति धर्म समझाते हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण में कथा है कि भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य अंगों से भगवान नारायण, शिव व अन्य देवी-देवता प्रादुर्भूत हुए। शिवजी ने श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहा–
विश्वं विश्वेश्वरेशं च विश्वेशं विश्वकारणम्। विश्वाधारं च विश्वस्तं विश्वकारणकारणम्।।
विश्वरक्षाकारणं च विश्वघ्नं विश्वजं परम्। फलबीजं फलाधारं फलं च तत्फलप्रदम्।।
‘आप विश्वरूप हैं, विश्व के स्वामी हैं, नहीं नहीं, विश्व के स्वामियों के भी स्वामी हैं, विश्व के कारण हैं, कारण के भी कारण हैं, विश्व के आधार हैं, विश्वस्त हैं, विश्वरक्षक हैं, विश्व का संहार करने वाले हैं और नाना रूपों में विश्व में आविर्भूत होते हैं। आप फलों के बीज हैं, फलों के आधार हैं, फलस्वरूप हैं और फलदाता हैं।
🙏 ।। जय श्री हरि । जय भोलेनाथ ।। 🙏
No comments:
Post a Comment