Tuesday 26 May 2020

स्वस्तिक मंत्र !

"स्वस्तिक मांगलिक चिह्न"

स्वस्तिक मंत्र या "स्वस्ति मन्त्र" शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है।
स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।

स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।

स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है।
'सु' का अर्थ सुंदर,'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला।

'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद,मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक,सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।' इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं,अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है।

स्वस्तिक का शाब्दिक अर्थ होता है - "अच्छा या मंगल करने वाला।" स्वस्तिक चिन्ह को हिन्दू धर्म ने ही नहीं सभी धर्मों ने परम पवित्र माना है। हिन्दू संस्कृति के प्राचीन ऋषियों ने अपने धर्म के आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष चिन्हों की रचना की, ये चिन्ह मंगल भावों को प्रकट करते हैं,ऐसा ही एक चिन्ह है - 'स्वस्तिक'। प्रकार स्वस्तिक को मंगल चिन्हों में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है और पुरे विश्व में इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। इसी कारण किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है।

'स्वास्तिक' केवल एक चिह्न नहीं बल्कि शक्ति और विश्वास का नाम है। हिंदू पूजा विधान में स्वास्तिक के महत्व से कौन परिचित नहीं है।

पूजा का प्रारंभ ही पूजन स्थल पर स्वास्तिक बनाने के साथ होता है। हिंदू घरों में हर शुभ कार्य  स्वस्ति,स्वास्तिक या सातिया बनाकर ही शुरू किया जाता है। साधारण पूजा-पाठ हो या कोई विशाल धार्मिक आयोजन, स्वास्तिक हर जगह अंकित किया ही जाता है।

हिंदू घरों में विवाह के बाद वर-वधु को स्वस्तिक के दर्शन कराए जाते हैं,ताकि वे सफल दांपत्य जीवन प्राप्त कर सकें। कई स्थानों पर नवजात शिशु को छठी यानी जन्म के छठवें दिन स्वस्तिक अंकित वस्त्र पर सुलाया जाता है। राजस्थान में नवविवाहिता की ओढ़नी पर स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। मान्यता है कि इससे वधु के सौभाग्य सुख में वृद्धि होती है। गुजरात में लगभग हर घर के दरवाजे पर सुंदर रंगों से स्वस्तिक बनाए जाने की परम्परा है। माना जाता है कि इससे घर मेंअन्न,वस्त्र,वैभव की कमी नहीं होती और अतिथि हमेशा शुभ समाचार लेकर आता है। 

ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग,चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत- प्रोत बताया गया है।

मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन,वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वस्तिक को ही अंकित किया जाता है। स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है।

स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो।

ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

अर्थ - महती कीर्ति वाले ऐश्वर्य शाली इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है,सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें।  जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करे।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)

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