Monday 1 June 2020

गंगा दशहरा



हिन्दू पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा पर्व प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पापनाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरितश्रेष्ठा एवं पुण्यसलिला मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। 

विष्णुपदी गंगा मैया के बारे में कहा गया है - 'गंगे तव दर्शनात मुक्तिः' अर्थात निष्कपट भाव से गंगाजी के दर्शन मात्र से जीवों को कष्टों से मुक्ति मिलती है। वहीं गंगाजल के स्पर्श से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पाठ, यज्ञ, मंत्र , होम और देवार्चन आदि समस्त शुभ कर्मों से भी जीव को वह गति नहीं मिलती,जो गंगाजल के सेवन से प्राप्त होती है। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।

ब्रह्मा जी के कहने पर पराप्रकृति - गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं  'पराप्रकृति धर्मद्रवा'  को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डलु में धारण कर लिया। तत्पश्चात  भगवान शंकर ने सूर्यवंशी राजा भगीरथ के पूर्वज सगर के साठ हज़ार पुत्रों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर उतार दिया। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार, गंगा मां की आराधना, स्नान एवं पूजन-उपवास करने वाला व्यक्ति दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। इनमें से तीन प्रकार के दैहिक, चार वाणी के द्वारा किए हुए एवं तीन मानसिक पाप हैं। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। 

माँ गंगा शुद्ध, विद्या स्वरूपा, इच्छा ज्ञान एवं क्रिया रूप, दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों को शमन करने वाली, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरूषार्थों को देने वाली शक्ति स्वरूपा हैं। जो गंगाजी का सेवन करता है,उसने सब तीर्थों मैं स्नान कर लिया, सब यज्ञों की दीक्षा ले ली और सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान पूरा कर लिया। 

कलियुग में काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर, ईर्ष्या आदि अनेकों  विकारों का समूल नाश करने में गंगा के समान और कोई नहीं है। विधिहीन, धर्महीन, आचरणहीन मनुष्यों को भी यदि माँ गंगा का सानिध्य मिल जाए तो वे भी मोह एवं अज्ञान के संसार सागर से पार हो जाते हैं।

गंगाजल को  रखने के लिए तांबा, चांदी या सोने के बर्तन शुभ रहते हैं। घर के मंदिर में गंगाजली रखें और नियमित रूप से पूजा-पाठ करें। घर में सकारात्मकता और पवित्रता बनाए रखने के लिए समय-समय पर गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।

सनातन धर्म में गंगा को मोक्ष दायिनी कहा गया है। आज भी मृत्यु के बाद मनुष्य की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करना श्रेष्ठ माना जाता है।  गरूड़ पुराण सहित कई ग्रंथों में जिक्र है कि गंगा  देव नदी या स्वर्ग की नदी है। गंगा के पानी में बहने वाली अस्थि से पितरों को सीधे स्वर्ग मिलता है। मान्यता है कि ज‌ितने समय तक गंगा में व्यक्त‌ि की अस्‍थ‌ि पड़ी रहती है व्यक्त‌ि उतने समय तक स्वर्ग में वास करता है और दुबारा जन्म लेने से बचा रहता है।


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