Monday 12 October 2020

॥ राम शब्द की ब्याख्या ॥


।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

राम करुणा में हैं। राम शान्ति में हैं। राम एकता में हैं। राम प्रगति में हैं। राम शत्रु के चिन्तन में हैं। राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं। राम तो घट-घट में हैं। राम सत्य हैं। राम सत् चित् आनन्द हैं।

"रमते कणे-कणे इति रामः।"


राशब्दो विश्ववचनो मश्चापीश्वरवाचकः ।

विश्वानामीश्वरो यो हि तेन रामः प्रकीर्त्तितः ॥ 


रमते रमया सार्द्धं तेन रामं विदुर्ब्बुधाः ।

रमाणां रमणस्थानं रामं रामविदो विदुः ॥


रा चेति लक्ष्मीवचनो मश्चापीश्वरवाचकः ।

लक्ष्मीपतिं गतिं रामं प्रवदन्ति मनीषिणः ॥


नाम्नां सहस्रं दिव्यानां स्मरणे यत् फलं लभेत् ।

तत् फलं लभते नूनं रामोच्चारणमात्रतः ॥


          –ब्रह्मवैवर्तपुराण, 110/18-21 


'राम' शब्द में दो पद निहित हैं । एक  'रा' और दूसरा 'म' । यहाँ 'रा' का अर्थ है– विश्व​, 'म' का अर्थ है– ईश्वर । अतः राम का अर्थ हुआ–  विश्व के ईश्वर ।

उपर्युक्त श्लोकों द्वारा 'राम' शब्द की व्युत्पत्ति की गयी है ।  राम की व्युत्पत्ति है– 'रमया रमते' अर्थात् रमा (सीता) के साथ जो प्रीति रखते हैं, वे ही राम हैं।

एक और व्युत्पत्ति 'राम' शब्द की बतायी गयी है । वह इस प्रकार है – 'रमाणां रमणस्थानं रामः इति' । अर्थात् रमाओं भक्तों का रमणस्थान प्रीति का आश्रय स्थान राम है।

'राम' मे दो शब्द निहित हैं –  'रा' और 'म' । 'रा' का अर्थ है– लक्ष्मी, 'म" का अर्थ है– ईश्वर । तथा च 'राम' का अर्थ हुआ– लक्ष्मीपति । वह लक्ष्मीपति ही हम लोगों के उद्धार की गति हैं इसलिए 'राम' कहा गया है।

'रम्' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है। 'रम्' धातु का अर्थ है– रमण (निवास, विहार) करना।  वे प्राणिमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास) करते हैं, इसलिए 'राम' हैं तथा भक्तजन उनमें 'रमण' करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे 'राम' हैं - "रमते कणे-कणे इति रामः"। 'विष्णुसहस्रनाम' पर लिखित अपने भाष्य में आद्य शंकराचार्य ने पद्मपुराण का उदाहरण देते हुए कहा है कि नित्यानन्दस्वरूप भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे 'राम' हैं।

भगवान् विष्णु के हजार नामों के स्मरण से जो फल मिलता है वह फल एक राम नाम के उच्चारण से मिलता है ।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥


           – श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

'राम' शब्द एक अन्य व्युत्पत्ति है – 'रमन्ति इति रामः ।' जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है वह राम है।

'रमन्ते योगिनः यस्मिन् स रामः।'

अर्थात्  जिसमें योगी लोगों का मन रमण करता है उसी को कहते हैं ‘राम’।

अथवा योगी जिसमें रमण करते हैं, वह राम हैं।

'रमन्ति इति रामः' 

अर्थात् जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है, वही राम हैं।

'रमन्ते क्रीडन्ते योगिनो यस्मिन् स एव राम:।

अर्थात् जिस परम तत्त्व, परम सत्ता में योगी लोग रमण करते हैं उस तत्त्व या परमसत्ता को ही राम कहा गया है। 

“यस्मिन् रमन्ते मुनयो विद्यायाSज्ञान विप्लवतं गुरु:प्राह रामेति रमणाद्राम इत्यपि !"

–अध्यात्म रामायण बाल का.3/40 

विज्ञान के द्वारा अज्ञान के नष्ट होने पर मुनि जन जिनमे रमण करते हैं अथवा जो अपनी सुन्दरता से भक्तो के चित्त को रमाते (आनन्द करते )हैं उनका नाम गुरु वशिष्ठ ने राम रखा ! “

रमन्ते योगिनो यस्मिन् नित्यानन्दे चिदात्मनि। 

इति राम पदेनाSसौ परब्रह्मभिधीयते।।


रमन्ते योगिनो यस्मिन् रमणं राम एव सः ।

श्रमितानां विरामोऽयं विरामोऽन्यो निरर्थकः ।।

  

–लक्ष्मीनारायणसंहिता , 2/47/15 

व्यास जी ने कहा है –

"आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद्बलं विदु:।"

"रमयन् सुहृदो गुणै:! आख्यास्यते राम इति ।"

–भागवत,  10/8/12

जो अपने सगे सम्बन्धी और मित्रों को अपने गुणों द्वारा अत्यन्त आनन्दित करेगा उसका नाम राम होगा ।

राम इत्यभिरामेण वपुषा तस्य चोदितः। 

नामधेयं गुरुश्चक्रे जगत्प्रथममङ्गलम्॥

–रघुवंशमहाकाव्यम् , 10/67 

अभिरमन्ते जना यस्मिंस्तद् अभिरामं मनोहरं सुन्दरं तेन अभिरामेण वपुषा शरीरेण चोदितः 

प्रेरितः गुरुः पिता राजा दशरथः तस्य नवजातशिशोः पुत्रस्येत्यर्थः 

जगतां लोकानां प्रथमं पूर्वं प्रधानं मङ्गलं कल्याणं शुभमिति जगत्प्रथममङ्गलम्। 

रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः इति नाम एवेति नामधेयं चक्रे कृतवान्। 

अभिरामत्वमेव रामशब्दप्रवृत्तिनिमित्तमित्यर्थः।

'राम' पूर्ण मन्त्र है

'राम' स्वतः मूलतः अपने आप में पूर्ण मन्त्र है। 'र', 'अ' और 'म', इन तीनों अक्षरों के योग से 'राम' मंत्र बनता है। यही राम रसायन है। 'र' अग्निवाचक है। 'अ' बीज मंत्र है। 'म' का अर्थ है– ज्ञान। यह मन्त्र पापों को जलाता है, किन्तु पुण्य को सुरक्षित रखता है और ज्ञान प्रदान करता है। हम चाहते हैं कि पुण्य सुरक्षित रहें, सिर्फ पापों का नाश हो। 'अ' मन्त्र जोड़ देने से अग्नि केवल पाप कर्मों का दहन कर पाती है और हमारे शुभ और सात्विक कर्मों को सुरक्षित करती है। 'म' का उच्चारण करने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। हमें अपने स्वरूप का भान हो जाता है। इसलिए हम र, अ और म को जोड़कर एक मंत्र बना लेते हैं –राम। 'म' अभीष्ट होने पर भी यदि हम 'र' और 'अ' का उच्चारण नहीं करेंगे तो अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होगी। राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है।

दो बार ‘‘राम राम’’ बोलने का क्या तात्पर्य है ?

हिन्दी की शब्दावली में ‘र’ सत्ताईसवाँ अक्षर है, ‘आ’ की मात्रा दूसरा और ‘म’ पच्चीसवाँ अक्षर है। अब तीनों अंकों का योग करें तो 27 + 2 + 25 = 54 अर्थात् एक ‘राम’ का योग 54 हुआ, इसी प्रकार दो ‘राम राम’ का कुल योग 108 होगा। हम जब कोई जाप करते हैं तो 108 मनके की माला गिनकर करते हैं।

सिर्फ ‘राम राम’ कह देने से ही पूरी माला का जाप हो जाता है।

(साभार -  अनजान, व्हाट्सएप से प्राप्त)

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