Sunday 10 January 2021

"श्रीराम_स्तुति"

 


जय राम रमारमनं समनं । भवताप भयाकुल पाहिं जनं ।।

अवधेस सुरेस रमेस बिभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ।।

दससीस बिनासन बीस भुजा । कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ।।

रजनीचर बृंद पतंग रहे । सर पावक तेज प्रचंड दहे ।।

महि मंडल मंडन चारुतरं । धृत सायक चाप निषंग बरं ।।

मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ।।

मनजात किरात निपात किए । मृग लोक कुभोग सरेन हिए ।।

हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । बिषया बन पावँर भूलि परे ।।

बहुरोग बियोगन्हि लोग हए । भवदंध्रि निरादर के फल ए ।।

भव सिंधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ।।

अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह कें पद पंकज प्रीति नहीं ।।

अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ।।

नहिं राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह कें सम बैभव वा बिषदा ।।

एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ।।

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ । पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ।।

सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ।।

मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुबीर महा रनधीर अजे ।।

तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ।।

गुन सील कृपा परमायतनं । प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं ।।

रघुनंद निकंदय द्वंद्वधनं । महिपाल बिलोकय दीन जनं ।।

दोहा :
बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग।। 

जय श्री कृष्ण
जय श्रीराम

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