Tuesday 28 December 2021

ॐ श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् ॥

 


🙏🕉️🚩 श्रीहनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्...!!

-------------------------------------------------------------------

यह हनुमान तांडव स्त्रोत सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसके पढ़ने से हर तरह के संकट, रोग, शोक आदि सभी तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाते हैं।

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥
 
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
 
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
 
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
 
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
 
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
 
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
 
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
 
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
 
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
 
ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥🙏🕉️🚩

Wednesday 22 December 2021

महाभारत का युद्ध !


महाभारत युद्ध के 18 दिनों का रहस्य

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था और 24,165 कौरवसैनिक लापता हो गए थे।

लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। 

शोधानुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ, तब श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी।

महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद उन्होंने देहत्याग दी थी। इसका मतलब 119 वर्ष की आयु में उन्होंने देहत्याग किया था।भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभ के संधि काल में विद्यमान थे।

भागवत पुराण ने अनुसार श्रीकृष्‍ण के देह छोड़ने के बाद 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5120 वर्ष हो गए हैं।

महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समंत्र पंचक तीर्थ के पास हिरण्यवती नदी (सरस्वती नदी की सहायक नदी) के तट पर डाला।

कौरवों ने कुरुक्षेत्र के पूर्वी भाग में वहां से कुछ योजन की दूरी पर एक समतल मैदान में अपना पड़ाव डाला। दोनों ओर के शिविरों में सैनिकों के भोजन और घायलों के इलाज की उत्तम व्यवस्था थी।

हाथी,घोड़े और रथों की अलग व्यवस्था थी। हजारों शिविरों में से प्रत्येक शिविर में प्रचुर मात्रा में खाद्य सामग्री,अस्त्र-शस्त्र, यंत्र और कई वैद्य और शिल्पी वेतन देकर रखे गए।

 दोनों सेनाओं के बीच में युद्ध के लिए 5 योजन(1 योजन= 8 किमी की परिधि, विष्णु पुराण के अनुसार 4 कोस या कोश = 1 योजन= 13 किमी से 16 किमी) =40 किमी का घेरा छोड़ दिया गया था।

कौरवों की ओर थे सहयोगी जनपद

गांधार,मद्र,सिन्ध,काम्बोज,कलिंग,सिंहल, दरद,अभीषह,मागध,पिशाच,कोसल, प्रतीच्य,बाह्लिक,उदीच्य,अंश,पल्लव, सौराष्ट्र,अवन्ति,निषाद,शूरसेन,शिबि, वसति,पौरव,तुषार,चूचुपदेश,अशवक, पाण्डय, पुलिन्द, पारद, क्षुद्रक, प्राग्ज्योतिषपुर, मेकल, कुरुविन्द, त्रिपुरा, शल, अम्बष्ठ, कैतव, यवन, त्रिगर्त, सौविर और प्राच्य।

कौरवों की ओर से ये यौद्धा लड़े थे :

भीष्म,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य,कर्ण,अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज, सुदक्षिण, बृहद्वल, दुर्योधन व उसके 99 भाई सहित अन्य हजारों यौद्धा।

 पांडवों की ओर थे ये जनपद :

पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय, सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक, किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि, शबर, उद्भस, वत्स,पौंड्र , पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तगंण और परतगंण।

पांडवों की ओर से लड़े थे ये यौद्धा :

भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, युधिष्टर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज, घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील।

तटस्थ जनपद :

विदर्भ,शाल्व,चीन,लौहित्य,शोणित,नेपा,कोंकण,कर्नाटक,केरल,आन्ध्र,द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।


पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए। उनके बनाए हुए नियम निम्नलिखित हैं-

1. प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा।

2. युद्ध समाप्ति के पश्‍चात छल-कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे।

3. रथी रथी से,हाथी वाला हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा।

4. एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा।

5. भय से भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा।

6. जो वीर निहत्था हो जाएगा उस परकोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा।

7. युद्ध में सेवक का काम करने वालों परकोई अस्त्र नहीं उठाएगा।

प्रथम दिन का युद्ध :

प्रथम दिन एक ओर जहां कृष्ण-अर्जुन अपने रथ के साथ दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़े थे और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे। इसी दौरान भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। इस समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी तरफ से भी चाहे युद्ध करे।

इस घोषणा के बाद धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़ पांडवों के खेमे में चले गया। ऐसा युधिष्ठिर के क्रियाकलापों के कारण संभव हुआ था। श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध की घोषणा की। इस दिन 10 हजार सैनिकों की मृत्यु हुई। भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया। अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया।

पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मारे गए। भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया।

 कौन मजबूत रहा :👉 पहला दिन पांडव पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा और कौरव पक्ष मजबूत रहा

दूसरे दिन का युद्ध :

कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन तथा भीष्म, धृष्टद्युम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध हुआ। सात्यकि ने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया। द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया और उसके कई धनुष काट दिए,भीष्म द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया।

इस दिन भीम का कलिंगों और निषादों से युद्ध हुआ तथा भीम द्वारा सहस्रों कलिंग और निषाद मार गिराए गए,अर्जुन ने भी भीष्म को भीषण संहार मचाने से रोके रखा।

कौरवों की ओर से लड़ने वाले कलिंगराज भानुमान, केतुमान,अन्य कलिंग वीर योद्धा मारे गए।

 कौन मजबूत रहा :👉 दूसरे दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा

तीसरा दिन :

कौरवों ने गरूड़ तथा पांडवों ने अर्धचंद्राकार जैसी सैन्य व्यूह रचना की। कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की ओर से भीम व अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे। इस दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया। यह देखकर भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं,परंतु अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना का भीषण संहार करते हैं।

वे एक दिन में ही समस्त प्राच्य,सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को मार गिराते हैं।  भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया और तभी उसका सारथी रथ को भगा ले गया। भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। इस दिन भी कौरवों को ही अधिक क्षति उठाना पड़ती है। उनके प्राच्य,सौवीर,क्षुद्रक और मालव वीर योद्धा मारे जाते हैं।

 कौन मजबूत रहा :👉 इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया

 चौथा दिन :

चौथे दिन भी कौरव पक्ष को भारी नुकसान हुआ। इस दिन कौरवों ने अर्जुन को अपने बाणों से ढंक दिया,परंतु अर्जुन ने सभी को मार भगाया। भीम ने तो इस दिन कौरव सेना में हाहाकार मचा दी,दुर्योधन ने अपनी गज सेना भीम को मारने के लिए भेजी,परंतु घटोत्कच की सहायता से भीम ने उन सबका नाश कर दिया और 14 कौरवों को भी मार गिराया, परंतु राजा भगदत्त द्वारा जल्द ही भीम पर नियंत्रण पा लिया गया। बाद में भीष्म को भी अर्जुन और भीम ने भयंकर युद्ध कर कड़ी चुनौती दी।

 कौन मजबूत रहा :👉 इस दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा।

 पांचवें दिन का युद्ध :

श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद युद्ध की शुरुआत हुई और फिर भयंकर मार-काट मची। दोनों ही पक्षों के सैनिकों का भारी संख्या में वध हुआ। इस दिन भीष्म ने पांडव सेना को अपने बाणों से ढंक दिया। उन पर रोक लगाने के लिए क्रमशः अर्जुन और भीम ने उनसे भयंकर युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य को भीषण संहार करने से रोके रखा। भीष्म द्वारा सात्यकि को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया गया। सात्यकि के 10 पुत्र मारे गए। 

कौन मजबूत रहा :👉 इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।

 छठे दिन का युद्ध :

कौरवों ने क्रोंचव्यूह तथा पांडवों ने मकरव्यूह के आकार की सेना कुरुक्षे‍त्र में उतारी। भयंकर युद्ध के बाद द्रोण का सारथी मारा गया। युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित होता रहा,परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे। अंत में भीष्म द्वारा पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया।

 कौन मजबूत रहा :👉 इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया

सातवें दिन का युद्ध :

सातवें दिन कौरवों द्वारा मंडलाकार व्यूह की रचना और पांडवों ने वज्र व्यूह की आकृति में सेना लगाई। मंडलाकार में एक हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्‍वारोही,एक अश्‍वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस सैनिक लगाए गए थे। सेना के मध्य दुर्योधन था। वज्राकार में दसों मोर्चों पर घमासान युद्ध हुआ। इस दिन अर्जुन अपनी युक्ति से कौरव सेना में भगदड़ मचा देता है। धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है। अर्जुन पुत्र इरावान द्वारा विन्द और अनुविन्द को हरा दिया जाता है,भगदत्त घटोत्कच को और नकुल सहदेव मिलकर शल्य को युद्ध क्षेत्र से भगा देते हैं। यह देखकर एकभार भीष्म फिर से पांडव सेना का भयंकर संहार करते है। कौरवों को क्षति हुई।

कौन मजबूत रहा :👉 इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।

आठवें दिन का युद्ध :

कौरवों ने कछुआ व्यूह तो पांडवों ने तीन शिखरों वाला व्यूह रचा। पांडव पुत्र भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देते हैं।

अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी के पुत्र इरावान का बकासुर के पुत्र आष्ट्रयश्रंग (अम्बलुष) के द्वारा वध कर दिया जाता है। घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग किया गया परंतु बंगनरेश ने दुर्योधन को हटाकर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश की मृत्यु हो जाती है। इस घटना से दुर्योधन के मन में मायावी घटोत्कच के प्रति भय व्याप्त हो जाता है।  तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच को हराकर भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है। दिन के अंत तक भीमसेन धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।

 पांडव पक्ष की क्षति :👉 अर्जुन पुत्र इरावान का अम्बलुष द्वारा वध।

कौरव पक्ष की क्षति :👉 धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का भीम द्वारा वध।

कौन मजबूत रहा : 👉इस दोनों ही पक्ष ने डट किया और दोनों ही पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि कौरवों को ज्यादा क्षति पहुंची।

नौवें दिन का युद्ध :

कृष्ण के उपदेश के बाद भयंकर युद्ध हुआ जिसके चलते भीष्म ने बहादुरी दिखाते हुए अर्जुन को घायल कर उनके रथ को जर्जर कर दिया।

युद्ध में आखिरकार भीष्म के भीषण संहार को रोकने के लिए कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है। उनके जर्जर रथ को देखकर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्म पर झपटते हैं, लेकिन वे शांत हो जाते हैं,परंतु इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं।

 कौन मजबूत रहा :👉 कौरव

 दसवां दिन :

भीष्म द्वारा बड़े पैमाने पर पांडवों की सेना को मार देने से घबराए पांडव पक्ष में भय फैल जाता है,तब श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं। इसके बाद भीष्म पांचाल तथा मत्स्य सेना का भयंकर संहार कर देते हैं। फिर पांडव पक्ष युद्ध क्षे‍त्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए लगा देते हैं। युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिए। इस दौरान बड़े ही बेमन से अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया। भीष्म बाणों की शरशय्या पर लेट गए।

भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है।

 पांडव पक्ष की क्षति :👉 शतानीक

कौरव पक्ष की क्षति :👉 भीष्म

कौन मजबूत रहा :👉 पांडव

ग्यारहवें दिन :

भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं।

ग्यारहवें दिन सुशर्मा तथा अर्जुन,शल्य तथा भीम, सात्यकि तथा कर्ण और सहदेव तथा शकुनि के मध्य युद्ध हुआ।  कर्ण भी इस दिन पांडव सेना का भारी संहार करता है। दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि वे युधिष्ठिर को बंदी बना लें तो युद्ध अपने आप खत्म हो जाएगा,तो जब दिन के अंत में द्रोण युधिष्ठिर को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि अर्जुन आकर अपने बाणों की वर्षा से उन्हें रोक देता है। नकुल, युधिष्ठिर के साथ थे व अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए। इस प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके।

 पांडव पक्ष की क्षति :👉 विराट का वध

कौन मजबूत रहा :👉 कौरव

 बारहवें दिन का युद्ध :

कल के युद्ध में अर्जुन के कारण युधिष्ठिर को बंदी न बना पाने के कारण शकुनि व दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने के लिए त्रिगर्त देश के राजा को उससे युद्ध कर उसे वहीं युद्ध में व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं,वे ऐसा करते भी हैं,परंतु एक बार फिर अर्जुन समय पर पहुंच जाता है और द्रोण असफल हो जाते हैं। होता यह है कि जब त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं तब सात्यकि,युधिष्ठिर के रक्षक थे। वापस लौटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर

(पूर्वोत्तर का कोई राज्य) के राजा भगदत्त को अर्धचंद्र को बाण से मार डाला।सात्यकि ने द्रोण के रथ का पहिया काटा और उसके घोड़े मार डाले। सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना,सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना,भूरिश्रवा,कर्णपुत्र प्रसन थे। युद्ध भूमि में सात्यकि को भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी। हर बार सात्यकि को कृष्ण और अर्जुन ने बचाया।

 पांडव पक्ष की क्षति :👉 द्रुपद

कौरव पक्ष की क्षति :👉 त्रिगर्त नरेश

कौन मजबूत रहा :👉 दोनों

तेरहवें दिन :

कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की। इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन को व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं। भगदत्त युद्ध में एक बार फिर से पांडव वीरों को भगाकर भीम को एक बार फिर हरा देते हैं फिर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर ले उससे अर्जुन की रक्षा करते हैं। अंततः अर्जुन भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था,परंतु निकलना नहीं जानता था। अतः अर्जुन युधिष्ठिर,भीम आदि को उसके साथ भेजता है,परंतु चक्रव्यूह के द्वार पर वे सबके सब जयद्रथ द्वारा शिव के वरदान के कारण रोक दिए जाते हैं और केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है।  ये लोग करते हैं अभिमन्यु का वध :

कर्ण के कहने पर सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ,द्रोण,अश्वत्थामा,दुर्योधन,लक्ष्मण तथा शकुनि ने एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया। लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी। इससे दोनों की उसी समय मृत्यु हो गई। अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार सुनकर जयद्रथ को कल सूर्यास्त से पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की अन्यथा अग्नि समाधि ले लेने का वचन दिया।

 पांडव पक्ष की क्षति :👉 अभिमन्यु

कौन मजबूत रहा :👉 पांडव

 चौदहवें दिन :

अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो जाता है और फिर वे यह योजना बनाते हैं कि आज युद्ध में जयद्रथ को बचाने के लिए सब कौरव योद्धा अपनी जान की बाजी लगा देंगे। द्रोण जयद्रथ को बचाने का पूर्ण आश्वासन देते हैं और उसे सेना के पिछले भाग में छिपा देते हैं। युद्ध शुरू होता है।

भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था तभी अर्जुन ने भूरिश्रवा के हाथ काट दिए, वह धरती पर गिर पड़ा तभी सात्यकि ने उसका सिर काट दिया। द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं। तब कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं। सूर्यास्त होते देख अर्जुन अग्नि समाधि की तैयारी करने लगे जाते हैं। छिपा हुआ जयद्रथ जिज्ञासावश अर्जुन को अग्नि समाधि लेते देखने के लिए बाहर आकर हंसने लगता है,उसी समय श्रीकृष्ण की कृपा से सूर्य पुन: निकल आता है और तुरंत ही अर्जुन सबको रौंदते हुए कृष्ण द्वारा किए गए क्षद्म सूर्यास्त के कारण बाहर आए जयद्रथ को मारकर उसका मस्तक उसके पिता के गोद में गिरा देते हैं।

पांडव पक्ष की क्षति 👉 द्रुपद, विराट

कौरव पक्ष की क्षति :👉 जयद्रथ, भगदत्त,

पंद्रहवें दिन :

द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के ‍खेमे में दहशत फैल गई। पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया',लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।'

श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला।

 कौरव पक्ष की क्षति :👉 द्रोण

कौन मजबूत रहा :👉 पांडव

 सोलहवें दिन का युद्ध :

द्रोण के छल से वध किए जाने के बाद कौरवों की ओर से कर्ण को सेनापति बनाया जाता है। कर्ण पांडव सेना का भयंकर संहार करता है और वह नकुल व सहदेव को युद्ध में हरा देता है, परंतु कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता। फिर अर्जुन के साथ भी भयंकर संग्राम करता है। दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अमोघ शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर दिया।

यह अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन के लिए बचाकर रखी थी लेकिन घटोत्कच से घबराए दुर्योधन ने कर्ण से इस शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए कहा। यह ऐसी शक्ति थी जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। कर्ण ने इसे अर्जुन का वध करने के लिए बचाकर रखी थी। इस बीच भीम का युद्ध दुःशासन के साथ होता है और वह दु:शासन का वध कर उसकी छाती का रक्त पीता है और अंत में सूर्यास्त हो जाता है।

 कौरव पक्ष की क्षति :👉 दुःशासन

कौन मजबूत रहा :👉 दोनों

सत्रहवें दिन :

शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता।बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है। कर्ण के रथ का पहिया धंसने पर श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर दिया जाता है। इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल टूट जाता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए गए, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं।

 कौरव पक्ष की क्षति :👉 कर्ण,शल्य और दुर्योधन के 22 भाई मारे जाते हैं।

कौन मजबूत रहा :👉 पांडव

अठारहवें दिन का युद्ध :

अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचे- अश्‍वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। इसी दिन अश्वथामा द्वारा पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई। सेनापति अश्‍वत्थामा तथा कृपाचार्य के कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया गया। अश्‍वत्थामा ने सभी पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों,धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि का वध किया। पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्ध भूमि श्मशान भूमि में बदल गई।

यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला। इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए भाइयों को मार देता है,सहदेव शकुनि को मार देता है और अपनी पराजय हुई जान दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तंभ में जा छुपता है।

इसी दौरान बलराम तीर्थयात्रा से वापसआ गए और दुर्योधन को निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया।  छिपे हुए दुर्योधन को पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है और छल से जंघा पर प्रहार किए जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं।

पांडव पक्ष की क्षति :👉 द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी

कौरव पक्ष की क्षति :👉 दुर्योधन कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में मारे गए।पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत,सात्यकि के दस पुत्र,अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर।

 कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र के दुर्योधन सहित सभी पुत्र, भीष्म, त्रिगर्त नरेश, जयद्रथ, भगदत्त, द्रौण, दुःशासन, कर्ण, शल्य आदि सभी युद्ध में मारे गए थे। युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए मृत सैनिकों का(चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया था।

इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य,धन, वैभव से वैराग्य हो गया। कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।

 बच गए योद्धा :👉 महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे जिनके नाम हैं- 

कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, 

जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।


(Courtesy -  Unknown, WhatsApp forwarded message)

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ 

Friday 14 May 2021

अक्षय तृतीया ।



आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को अक्षय तृतीया की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।


वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। भारत की धार्मिक परम्पराओं में यह एक अति विशेष दिन है जिसे किसी भी शुभ कार्य के लिए स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। यह दिन भगवान परशुराम का जन्म दिन भी है।


स्वामी श्री हरिदास जी महाराज द्वारा प्रणीत परंपरा में आज के दिन प्रातः कालीन दर्शन सत्र में लाड़ले ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज के दिव्य चरण दर्शन एवं सायं काल अद्भुत सर्वांग दर्शन होते हैं। अक्षय तृतीया पर ठाकुर जी के चरणों मे चंदन समर्पित किया जाता है।


अक्षय शब्द का अर्थ है जिसका क्षय अर्थात नाश न हो। समाज में धीरे धीरे यह धारणा बनती गयी कि आज के दिन कुछ ऐसी वस्तुएं क्रय करनी चाहिए जो चिर काल तक परिवार के कोषागार में रहें, इससे परिवार में सर्वदा समृद्धि बनी रहेगी। 


सामान्य जनों की मानसिकता में स्वर्ण को विशेष स्थान प्राप्त है, इसे समृद्धि का प्रतीक माना जाता है साथ ही मांगलिक अवसरों पर स्वर्ण आभूषणों को धारण करना कल्याण कारी समझा जाता है। दुर्दिन में स्वर्ण का विक्रय कर के प्राप्त मुद्रा से अन्य आवश्यक कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। स्वर्ण के इन गुणों के अतिरिक्त स्वर्ण व्यवसाइओं द्वारा किये जाने वाले विज्ञापन तथा सूचना क्रांति के इस युग में इन विज्ञापनों की घर घर तक व्यापक पहुँच से पिछले कुछ वर्षौं से यह अनर्गल प्रचार हो गया है कि अक्षय तृतीया के अवसर पर स्वर्ण क्रय करना अति आवश्यक है।


यहाँ एक क्षण रुक कर विचार करना आवश्यक है कि आज का यह अति विशेष दिन, जब हमें ठाकुरजी के चरण दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, क्या इसका आध्यात्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है? क्या यह दिन मात्र स्वर्ण क्रय कर लेने से ही सार्थक हो जायेगा?


थोड़ा विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह दिन चरण वंदना के लिए विशेष अवसर है। चरण वंदना का अर्थ है सम्पूर्ण समर्पण। जब साधक अपने इष्ट के शरणागत होता है, समर्पण करता है तब उसकी एक ही अभिलाषा होती है - उनके श्री चरणों के दर्शन। 


इस सन्दर्भ में श्री राम चरित मानस में वर्णित विभीषणजी की शरणागति का मनोहर प्रसंग पठनीय है। लंका के वैभव पूर्ण राज्य को त्याग कर जब विभीषण प्रभु श्री राम की ओर अग्रसर होते हैं, तो उनकी एक ही अभिलाषा है:


देखिहउँ जाइ चरन जलजाता । अरुन मृदुल सेवक सुख दाता ।।


प्रभु श्री राम के दर्शन होते ही विभीषण दीन वचनों से प्रार्थना करते हुए उनके श्री चरणों में दंडवत प्रणाम करते हैं:


अस कहि करत दंडवत देखा । तुरत उठे प्रभु हरष विशेषा।।

दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि ह्रदय लगावा।।


और परम कृपालु प्रभु श्री राम उनको देखते ही अत्यधिक प्रसन्नता पूर्वक उठते हैं, उनको अपनी विशाल भुजाओं में भरकर ह्रदय से लगा लेते हैं।


क्या हम सभी ऐसा नहीं चाहते हैं कि हमें भी अपने इष्टदेव की ऐसी ही कृपा प्राप्त हो? यदि हाँ, तो हम सब आज के स्वयं सिद्ध मुहूर्त में उनके श्री चरणों का वंदन करते हुए शरणागति की प्रार्थना करें।

Wednesday 12 May 2021

ॐ महामंत्र के उच्चारण से फायदे ।

ऊँ की ध्वनि का महत्व जानिये ‌

एक घडी,आधी घडी,आधी में पुनि आध ।

तुलसी चरचा राम की, हरै कोटि अपराध ।।


1 घड़ी    =  24 मिनट

½  घडी़  =  12 मिनट

¼  घडी़  =    6 मिनट


क्या ऐसा हो सकता है कि 6 मि. में किसी साधन से करोडों विकार दूर हो सकते हैं।


उत्तर है हाँ हो सकते हैं


वैज्ञानिक शोध करके पता चला है कि......


सिर्फ 6 मिनट ऊँ का उच्चारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जाते हैं जो दवा से भी इतनी जल्दी ठीक नहीं होते.........


छः मिनट ऊँ का उच्चारण करने से मस्तिष्क मै विषेश वाइब्रेशन (कम्पन) होता है.... और औक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त होने लगता है।


कई मस्तिष्क रोग दूर होते हैं.. स्ट्रेस और टेन्शन दूर होती है,,,, मैमोरी पावर बढती है..।


लगातार सुबह शाम 6 मिनट ॐ के तीन माह तक उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है और रक्त में औक्सीजन लेबल बढता है।

      

रक्त चाप , हृदय रोग, कोलस्ट्रोल जैसे रोग ठीक हो जाते हैं....।


विशेष ऊर्जा का संचार होता है ......... मात्र 2 सप्ताह दोनों समय ॐ के उच्चारण से

       

घबराहट, बेचैनी, भय, एंग्जाइटी जैसे रोग दूर होते हैं।


कंठ में विशेष कंपन होता है मांसपेशियों को शक्ति मिलती है..।

      

थाइराइड, गले की सूजन दूर होती है और स्वर दोष दूर होने लगते हैं..।


पेट में भी विशेष वाइब्रेशन और दबाव होता है....। एक माह तक दिन में तीन बार 6 मिनट तक ॐ के उच्चारण से पाचन तन्त्र , लीवर, आँतों को शक्ति प्राप्त होती है, और डाइजेशन सही होता है, सैकडौं उदर रोग दूर होते हैं..।


उच्च स्तर का प्राणायाम होता है, और फेफड़ों में विशेष कंपन होता है..।


फेफड़े मजबूत होते हैं, स्वसनतंत्र की शक्ति बढती है, 6 माह में  अस्थमा, राजयक्ष्मा (T.B.) जैसे रोगों में लाभ होता है।


आयु बढती है।

ये सारे रिसर्च (शोध) विश्व स्तर के वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं।

   

जरूरत है छः मिनट रोज करने की....।

    

नोट:- ॐ का उच्चारण लम्बे स्वर में करें ।।


आप सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहे यही मंगल  कामना 


Thursday 8 April 2021

श्री हनुमान चालीसा I


 दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा

कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे

काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन

तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर

राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया

राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा

विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे

रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए

श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई

तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै

अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा

राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना

लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू

लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही

जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे

होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना

तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै

तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै

महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा

तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै

सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा

सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ

कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई

छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा

होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥



Tuesday 2 February 2021

वीतराग - बियांड अटैचमेंट; डिटैचमेंट नहीं।

 


बड़ी मीठी कथा है, याज्ञवल्क्य घर छोड़कर जाने लगा। उसकी दो पत्नियां हैं, कात्यायिनी और मैत्रेयी। उसने उन दोनों को बुलाकर कहा कि मेरी धन-संपदा आधी-आधी बांट देता हूं। मैं जाता हूं अब त्याग करके। अब मैं प्रभु की खोज में निकलता हूं।

कात्यायिनी  राजी हो गई; साधारण स्त्री थी। साधारण स्त्री का मतलब, जिसे पति भी इसीलिए मूल्यवान होता है कि उसके पास संपत्ति है। ठीक है, पति जाता है, संपत्ति दे जाता है – कुछ भी नहीं जाता। कात्यायिनी  राजी हो गई। वह ठीक स्त्री थी।

लेकिन मैत्रेयीने एक सवाल उठाया। वह साधारण स्त्री न थी। मैत्रेयी ने कहा कि जो धन तुम्हें व्यर्थ हो गया, तो तुम मुझे किसलिए दे जाते हो ? अगर व्यर्थ है, तो बोझ मुझे मत दे जाओ। और अगर सार्थक है, तो तुम भी छोड़कर क्यों जाते हो ?

मैत्रेयी ने बड़ा ठीक सवाल उठाया। अगर व्यर्थ है, राख है, धूल है, तो मुझे देकर इतने गौरवान्वित क्यों होते हो ? अगर सार्थक है, तो छोड़कर कहां जाते हो ? रुको! अगर सार्थक है, तो हम साथ-साथ भोगें। और अगर व्यर्थ है, तो मुझे भी उसी धन की खबर दो, जो सार्थक है, जिसकी खोज में तुम जाते हो।

याज्ञवल्क्य मुश्किल में पड़ गया होगा। अभी याज्ञवल्क्य सिर्फ विराग में जा रहा था। मैत्रेयी ने उसे वीतराग के डायमेंशन में, वीतराग के आयाम में उन्मुख किया। अभी उसे सार्थक था धन, इसीलिए तो बांटने को उत्सुक था। अभी कुछ न कुछ अर्थ था उसे धन में। छोड़ता था जरूर, लेकिन सार्थक था। अभी वह विराग की दिशा में मुड़ता था। लेकिन मैत्रेयी ने उसे एक नई दिशा में, एक नए आयाम का इशारा किया। उसने कहा कि छोड़कर जाते हो, देकर जाते हो, गौरवान्वित हो कि काफी दे जा रहे हो, तो फिर तुम छोड़कर जाते नहीं। धन तुम्हें सार्थक है; धन तुम्हें पकड़े ही हुए है !

कृष्ण कहते हैं, जो राग के पार हो जाता है – बियांड। वीतराग का अर्थ है, बियांड अटैचमेंट; डिटैचमेंट नहीं। वीतराग का अर्थ है, आसक्ति के पार; विरक्त नहीं।  विरक्त विपरीत आसक्ति में होता है, पार नहीं होता। वह एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव पर चला जाता है; दोनों ध्रुव के पार नहीं होता। वह एक द्वंद्व के छोर से द्वंद्व के दूसरे छोर पर सरक जाता है, लेकिन द्वंद्वातीत नहीं होता

कृष्ण कहते हैं, जो वीतराग हो जाता है, वह मेरे शरीर को उपलब्ध हो जाता है। वीतराग, वीतभय, वीतक्रोध, वीतलोभ; जो इन सबके पार हो जाता है।  वह तीसरा ही आयाम है। थर्ड डायमेंशन है

तीन आयाम हैं जगत में। किसी चीज के प्रति राग, अर्थात उसे पास रखने की इच्छा। किसी चीज के प्रति विराग, अर्थात उसे पास न रखने की इच्छा। और किसी चीज के प्रति वीतराग, अर्थात वह पास हो या दूर, अर्थहीन; उससे भेद नहीं पड़ता।

*🙏|| जय श्री कृष्ण: ||🙏

Sunday 10 January 2021

मन्त्र की शक्ति

श्री राम जय राम जय जय राम 🌹🌷🚩 

जय जय विघ्न हरण हनुमान🌹🌷🚩

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

मंत्र क्या है ?क्या होती है मंत्र शक्ति ? भगवान राम ने भी शबरी को नवधाभक्ति का उपदेश देते समय कहा था। 

मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।

मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।

अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।

मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि।

मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।

मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।

मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- - मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

- मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।

- अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।

- मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।

- एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। - मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।

- कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।

- किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।

- मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। - मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।

- मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय। - मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। - माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।

- माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए। मंत्र क्या है .....

‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं

जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं

मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है !मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना ! और "त्र " का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से !लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री ,तथा नपुंसक के रूप में है !पुरुष मन्त्रों के अंत में "हूं फट " स्त्री मंत्रो के अंत में "स्वाहा " ,तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में "नमः " लगता है ! मंत्र साधना का योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है......

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है।

मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।

ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता।

 इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।

साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र जाप-  मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं।

किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।

बीज मंत्र- एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।

प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं।

उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम्

उनको बोलते हैं बीज मंत्र।

उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं। सब बीज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है। जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं।

ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है। ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी की पूजा में करते हैं।  इस बं के उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है। गठिया ठीक हो जाता है। शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो तो इष्ट सिद्धि भी मिलती है। बं... शब्द उच्चारण से गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है।

खं शब्द👉 खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है। हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है। १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का अशुभ प्रभाव चला जाता है। 

ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है। ब्रह्म वाचक। तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं। ॐ, खं और कं।

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है - रीं रामाय नम:।।

कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है क्लीं कृष्णाय नम:।।

जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ शून्य लगा दो तो १० गुना हो गया।

ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम:। तो हुं बिज मंत्र है।

ॐ बिज मंत्र है। विष्णवे  विष्णु भगवान का सुमिरन है।

बीजमन्त्रों से स्वास्थ्य-सुरक्षा

〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️

बीजमन्त्र                      लाभ

    कं           मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त विकृति में।

   ह्रीं            मधुमेह, हृदय की धड़कन में।

    घं             स्वपनदोष व प्रदररोग में।

    भं             बुखार दूर करने के लिए।

  क्लीं            पागलपन में।

    सं             बवासीर मिटाने के लिए।

    वं             भूख-प्यास रोकने के लिए।

    लं            थकान दूर करने के लिए।

 आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्री राम जय राम जय जय राम 🌹🌷🚩 

जय जय विघ्न हरण हनुमान🌹🌷🚩

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

"श्रीराम_स्तुति"

 


जय राम रमारमनं समनं । भवताप भयाकुल पाहिं जनं ।।

अवधेस सुरेस रमेस बिभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ।।

दससीस बिनासन बीस भुजा । कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ।।

रजनीचर बृंद पतंग रहे । सर पावक तेज प्रचंड दहे ।।

महि मंडल मंडन चारुतरं । धृत सायक चाप निषंग बरं ।।

मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ।।

मनजात किरात निपात किए । मृग लोक कुभोग सरेन हिए ।।

हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । बिषया बन पावँर भूलि परे ।।

बहुरोग बियोगन्हि लोग हए । भवदंध्रि निरादर के फल ए ।।

भव सिंधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ।।

अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह कें पद पंकज प्रीति नहीं ।।

अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ।।

नहिं राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह कें सम बैभव वा बिषदा ।।

एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ।।

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ । पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ।।

सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ।।

मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुबीर महा रनधीर अजे ।।

तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ।।

गुन सील कृपा परमायतनं । प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं ।।

रघुनंद निकंदय द्वंद्वधनं । महिपाल बिलोकय दीन जनं ।।

दोहा :
बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग।। 

जय श्री कृष्ण
जय श्रीराम