Friday 14 May 2021

अक्षय तृतीया ।



आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को अक्षय तृतीया की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।


वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। भारत की धार्मिक परम्पराओं में यह एक अति विशेष दिन है जिसे किसी भी शुभ कार्य के लिए स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। यह दिन भगवान परशुराम का जन्म दिन भी है।


स्वामी श्री हरिदास जी महाराज द्वारा प्रणीत परंपरा में आज के दिन प्रातः कालीन दर्शन सत्र में लाड़ले ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज के दिव्य चरण दर्शन एवं सायं काल अद्भुत सर्वांग दर्शन होते हैं। अक्षय तृतीया पर ठाकुर जी के चरणों मे चंदन समर्पित किया जाता है।


अक्षय शब्द का अर्थ है जिसका क्षय अर्थात नाश न हो। समाज में धीरे धीरे यह धारणा बनती गयी कि आज के दिन कुछ ऐसी वस्तुएं क्रय करनी चाहिए जो चिर काल तक परिवार के कोषागार में रहें, इससे परिवार में सर्वदा समृद्धि बनी रहेगी। 


सामान्य जनों की मानसिकता में स्वर्ण को विशेष स्थान प्राप्त है, इसे समृद्धि का प्रतीक माना जाता है साथ ही मांगलिक अवसरों पर स्वर्ण आभूषणों को धारण करना कल्याण कारी समझा जाता है। दुर्दिन में स्वर्ण का विक्रय कर के प्राप्त मुद्रा से अन्य आवश्यक कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। स्वर्ण के इन गुणों के अतिरिक्त स्वर्ण व्यवसाइओं द्वारा किये जाने वाले विज्ञापन तथा सूचना क्रांति के इस युग में इन विज्ञापनों की घर घर तक व्यापक पहुँच से पिछले कुछ वर्षौं से यह अनर्गल प्रचार हो गया है कि अक्षय तृतीया के अवसर पर स्वर्ण क्रय करना अति आवश्यक है।


यहाँ एक क्षण रुक कर विचार करना आवश्यक है कि आज का यह अति विशेष दिन, जब हमें ठाकुरजी के चरण दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, क्या इसका आध्यात्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है? क्या यह दिन मात्र स्वर्ण क्रय कर लेने से ही सार्थक हो जायेगा?


थोड़ा विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह दिन चरण वंदना के लिए विशेष अवसर है। चरण वंदना का अर्थ है सम्पूर्ण समर्पण। जब साधक अपने इष्ट के शरणागत होता है, समर्पण करता है तब उसकी एक ही अभिलाषा होती है - उनके श्री चरणों के दर्शन। 


इस सन्दर्भ में श्री राम चरित मानस में वर्णित विभीषणजी की शरणागति का मनोहर प्रसंग पठनीय है। लंका के वैभव पूर्ण राज्य को त्याग कर जब विभीषण प्रभु श्री राम की ओर अग्रसर होते हैं, तो उनकी एक ही अभिलाषा है:


देखिहउँ जाइ चरन जलजाता । अरुन मृदुल सेवक सुख दाता ।।


प्रभु श्री राम के दर्शन होते ही विभीषण दीन वचनों से प्रार्थना करते हुए उनके श्री चरणों में दंडवत प्रणाम करते हैं:


अस कहि करत दंडवत देखा । तुरत उठे प्रभु हरष विशेषा।।

दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि ह्रदय लगावा।।


और परम कृपालु प्रभु श्री राम उनको देखते ही अत्यधिक प्रसन्नता पूर्वक उठते हैं, उनको अपनी विशाल भुजाओं में भरकर ह्रदय से लगा लेते हैं।


क्या हम सभी ऐसा नहीं चाहते हैं कि हमें भी अपने इष्टदेव की ऐसी ही कृपा प्राप्त हो? यदि हाँ, तो हम सब आज के स्वयं सिद्ध मुहूर्त में उनके श्री चरणों का वंदन करते हुए शरणागति की प्रार्थना करें।

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