Wednesday, 19 August 2020
शिवलिंग के प्रकार एवं महत्त्व ।
Tuesday, 11 August 2020
जन्माष्टमी
आज का पर्व भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। उनका जन्म भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जन्माष्टमी पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त इस पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। वे वसुदेव और देवकी की पुत्र थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में यशोदा और नन्द के यहां उनका लालन पालन हुआ था।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। हालांकि भगवान हर युग में जन्म लेते हैं। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म क्यों हुआ था इस बात को स्वयं लीलाधर ने गीता के एक श्लोक में अपने अवतरित होने के कारण को बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन को यह बताया था कि जब जब धरती पर पाप बढ़ेगा। धर्म का नाश होगा। साधु-संतों का जीना मुश्किल हो जाएगा उस समय धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान विष्णु अवतरित होंगे।
जन्माष्टमी पर लोग कान्हा जी के बाल स्वरूप की पूजा करते हैं। कई लोग अपने घरों में बाल गोपाल को रखते हैं और उनकी सेवा एक छोटे बच्चे की भांति की जाती है। मान्यता है कि लड्डू गोपाल की सेवा से घर की सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं। लड्डू गोपाल के प्रसन्न होने से व्यक्ति का मन बहुत प्रसन्न रहता है। लड्डू गोपाल भाव के भूखे होते हैं।
बाल गोपाल की पूजा की सावधानियां
सबसे पहले सुबह उठकर घर पर रखे बाल गोपाल को गंगा जल मिश्रित साफ पानी से स्नान करवाएं, दिन के हिसाब से रंग के कपड़े का चयन कर पहनाएं जैसे सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को नारंगी, शनिवार को नीला और रविवार को लाल कपड़ा, टोपी लगाएं, लड्डू गोपाल के श्रृंगार में उनके कान की बाली, कलाई में कड़ा, हाथों में बांसुरी और मोरपंख होना चाहिए। चंदन का टीका लगाएं। पूजा के बर्तन को जरूर साफ करें। लड्डू गोपाल को भोग में मक्खन, मिश्री और तुलसी के पत्ते प्रिय होते हैं। झूला झूलाएं और फिर झूले में लगे परदे को बंद करना ना भूले।
जिन घरों में बाल गोपाल हैं वहां मांस-मदिरा का सेवन, गलत व्यवहार और अधार्मिक कार्यों से बचना चाहिए। रात को सोने से पहले बाल गोपाल को सुलाने के बाद ही सोएं।
जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल के भोग
जन्माष्टमी के दिन आटे की पंजीरी बनाकर लड्डू गोपाल को भोग लगाएं। आटे की पंजीरी काफी स्वादिष्ट होती है और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आटे की पंजीरी लड्डू गोपाल को काफी पसंद है।
लड्डू गोपाल को मक्खन बहुत पसंद है। उन्हें माखन चोर भी कहा जाता है। लड्डू गोपाल को जन्माष्टमी के दिन मक्खन मिश्री का भोग अवश्य लगाएं।
जन्माष्टमी के पावन दिन लड्डू गोपाल को मखाना पाग का भोग लगाएं। लड्डू गोपाल को मखाना पाग मिठाई काफी पसंद है।
लड्डू गोपाल को जन्माष्टमी के दिन मखाने की खीर का भोग लगाएं। लड्डू गोपाल को दूध, घी, मक्खन और मेवे से बने पकवान काफी पसंद होते हैं। मखाने की खीर बनाने के लिए आपको काजू, बादाम, घी और मखानों की आवश्यकता पड़ेगी।
जन्माष्टमी के पावन दिन पंचामृत का बहुत अधिक महत्व होता है। जन्माष्टमी के दिन पंचामृत से लड्डू गोपाल का अभिषेक किया जाता है। पंचामृत बनाने के लिए आपको घी, बतासे, दूध, दही, शहद, गंगाजल और तुलसी की आवश्यकता पड़ेगी। तुलसी पहले दिन तोड़ कर रख लें।
🙏 ‼ वृन्दावन बिहारीलाल की जय ‼ 🙏
(Courtesy - Unknown WhatsApp forwarded message)
Friday, 7 August 2020
उपनिषदों के पांच वचन
पहला वचन : आहार शुद्धि से प्राणों के सत की शुद्धि होती है, सत्व शुद्धि से स्मृति निर्मल और स्थिरमति (जिसे प्रज्ञा कहते हैं) प्राप्त होती है। स्थिर बुद्धि से जन्म-जन्मांतर के बंधनों और ग्रंथियों का नाश होता है और बंधनों और ग्रंथियों से मुक्ति ही मोक्ष है। अत: आहार शुद्धि प्रथम नियम और प्रतिबद्धता है।
आहार केवल मात्र वही नहीं जो मुख से लिया जाए, आहार का अभिप्राय है स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर को पुष्ट और स्वस्थ रखने के लिए इस दुनिया से जो खाद्य लिया जाए।
1. कान के लिए आहार है शब्द या ध्वनि।
2. त्वचा के लिए आहार है स्पर्श।
3. नेत्रों के लिए आहार है दृश्य या रूप जगत।
4. नाक के लिए आहार है गंध या सुगंध।
5. जिह्वा के लिए आहार है अन्न और रस।
6. मन के लिए आहार है उत्तम विचार और ध्यान।
अत: ज्ञानेन्द्रियों के जो 5 दोष हैं जिससे चेतना में विकार पैदा होता है, उनसे बचें।
दूसरा वचन : प्रत्येक पूर्ण है। चाहे वह व्यक्ति हो, जगत हो, पत्थर, वृक्ष या अन्य कोई ब्रह्मांड हो, क्योंकि उस पूर्ण से ही सभी की उत्पत्ति हुई है। स्वयं की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए ध्यान जरूरी है। जिस तरह एक बीज खिलकर वृक्ष बनकर हजारों बीजों में बदल जाता है, वैसी ही मनुष्य की भी गति है। यह संसार उल्टे वृक्ष के समान है। व्यक्ति के मस्तिष्क में उसकी पूर्णता की जड़ें हैं। ऐसा उपनिषदों में लिखा है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ -वृहदारण्यक उपनिषद
अर्थ : अर्थात वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है।
तीसरा वचन : जो व्यक्ति परस्पर सह-अस्तिव की भावना रखता है, मनुष्यों में वह श्रेष्ठ है। सभी के स्वास्थ्य और रक्षा की कामना करने वाला ही खुद के मन को निर्मल बनाकर श्रेष्ठ माहौल को प्राप्त होता है। जो व्यक्ति निम्नलिखित भावना को आत्मसात करता है, उसका जीवन श्रेष्ठ बनता जाता है।
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ -कठोपनिषद
अर्थ : परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। उक्त तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।
।।शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।। -उपनिषद
अर्थ : शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात शरीर को सेहतमंद बनाए रखना जरूरी है। इसी के होने से सभी का होना है अत: शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। पहला सुख निरोगी काया।
।। येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्म:।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।। -उपनिषद
अर्थ : जिसके पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म में से कुछ नहीं, वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जैसे एक मृग। अर्थात जिस मनुष्य ने किसी भी प्रकार से विद्या अध्ययन नहीं किया, न ही उसने व्रत और तप किया, थोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या विद्या दान नहीं दिया, न उसमें किसी भी प्रकार का ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है, ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार होते हैं। मनुष्य रूप में होते हुए भी पशु के समान जीवन व्यतीत करते हैं।