Wednesday 26 April 2023

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन !


प्रश्न;-  दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? राम की पूजा क्यों नही ?


दीपावली उत्सव दो युग सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है ! 


सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उसदिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मी पूजन होता है !


भगवान राम त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है ! 


इसलिए इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपो से जुड़ा है !


प्रश्न है  लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है !और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है !


लक्ष्मी जी जब सागरमन्थन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते नहीं थे, खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। 


माता लक्ष्मी परेशान हो गई, उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम मैनेजर बदल लो, माँ लक्ष्मी बोली, यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।


तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की  विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। 


माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को धन का डिस्ट्रीब्यूटर बनने को कहा, गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान, वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी !

अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/ रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।

कुबेर भंडारी रह गए, गणेश पैसा सैंक्शन करवाने वाले बन गए।

 

गणेश जी की दरियादिली देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।


दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिन, तो वे सँग ले आती हैं गणेश जी को, इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।


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Thursday 20 April 2023

मूर्ति पूजा ।

 🍁 मूर्ति पूजा 🍁

किसी धर्म सभा में एक बार एक कुटिल और दुष्ट व्यक्ति, मूर्ति पूजा का उपहास कर रहा था, “मूर्ख लोग मूर्ति पूजा करते हैं। एक पत्थर को पूजते हैं। पत्थर तो निर्जीव है। जैसे कोई भी पत्थर। हम तो पत्थरों पर पैर रख कर चलते हैं। सिर्फ मुखड़ा बना कर पता नही क्या हो जाता है उस निर्जीव पत्थर पर, जो पूजा करते हैं?”


पूरी सभा उसकी हाँ में हाँ मिला रही थी।


स्वामी विवेकानन्द भी उस सभा में थे। कुछ टिप्पड़ी नहीं की। बस सभा ख़त्म होने के समय इतना कहा कि अगर आप के पास आप के पिताजी की फोटो हो तो कल सभा में लाइयेगा।


दूसरे दिन वह व्यक्ति अपने पिता की फ्रेम की हुयी बड़ी तस्वीर ले आया। उचित समय पाकर, स्वामी जी ने उससे तस्वीर ली, ज़मीन पर रखा और उस व्यक्ति से कहा,” इस तस्वीर पर थूकिये”। आदमी भौचक्का रह गया। गुस्साने लगा।


 बोला, ये मेरे पिता की तस्वीर है, इस पर कैसे थूक सकता हूँ”


स्वामी जी ने कहा,’ तो पैर से छूइए” वह व्यक्ति आगबबूला हो गया” 


कैसे आप यह कहने की धृष्टता कर सकते हैं कि मैं अपने पिता की तस्वीर का अपमान करूं?”


“लेकिन यह तो निर्जीव कागज़ का टुकड़ा है” स्वामी जी ने कहा "तमाम कागज़ के तुकडे हम पैरों तले रौंदते हैं"


लेकिन यह तो मेरे पिता जी तस्वीर है। कागज़ का टुकड़ा नहीं। इन्हें मैं पिता ही देखता हूँ” उस व्यक्ति ने जोर देते हुए कहा


”इनका अपमान मै बर्दाश्त नहीं कर सकता “


हंसते हुए स्वामीजी बोले,” हम हिन्दू भी मूर्तियों में अपने भगवान् देखते हैं, इसीलिए पूजते हैं।


पूरी सभा मंत्रमुग्ध होकर स्वामीजी कि तरफ ताकने लगी।

समझाने का इससे सरल और अच्छा तरीका क्या हो सकता है?


मूर्ति पूजा, द्वैतवाद के सिद्धांत पर आधारित है। ब्रह्म की उपासना सरल नहीं होती क्योंकि उसे देख नहीं सकते। 


ऋषि मुनि ध्यान करते थे। उन्हें मूर्तियों की ज़रुरत नहीं पड़ती थी। आँखे बंद करके समाधि में बैठते थे। वह दूसरा ही समय था। 


अब उस तरह के व्यक्ति नहीं रहे जो निराकार ब्रह्म की उपासना कर सकें, ध्यान लगा सकें इसलिए साकार आकृति सामने रख कर ध्यान केन्द्रित करते हैं। भावों में ब्रह्म को अनेक देवी देवताओं के रूप में देखते हैं। भक्ति में तल्लीन होते हैं तो क्या अच्छा नहीं करते? चेहरा साकार होता है और हमारी भावनाओं को देवताओं-देवियों के भक्ति में ओत-प्रोत कर देता है। 


माता-पिता की अनुपस्थिति में हम जब उन्हें प्रणाम करते हैं तो उनके चेहरे को ध्यान में ही तो लाकर प्रणाम करते हैं। 


मूर्ति पूजा इसीलिए करते हैं कि हमारी भावनाएं पवित्र रहें..!!


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चिंता और चिंतन।

 मनुष्य के जीवन में जीने के दो रास्ते हैं चिंता और चिंतन। यहां पर कुछ लोग चिंता में जीते हैं और कुछ चिंतन में। चिंता में हजारों लोग जीते हैं और चिंतन में दो-चार लोग ही जी पाते हैं। चिंता स्वयं में एक मुसीबत है और चिंतन उसका समाधान | चिंता होने से आसान से भी आसान कार्य मुश्किल लगने लगता है जबकि चिंतन मुश्किल से भी मुश्किल कार्य को काफी आसान बना देता है।

जीवन में हमें इसलिए पराजय नहीं मिलती कि कार्य बहुत बड़ा था। हमें इसलिए पराजय मिलती है क्योंकि हमारे प्रयास बहुत छोटे होते हैं। हमारी सोच जितनी छोटी होगी, हमारी चिंता उतनी ही बड़ी होगी। हमारी सोच जितनी बड़ी होगी, हमारे कार्य करने का स्तर भी उतना ही श्रेष्ठ होगा। 


जीवन में कठनाइयां आती अवश्य हैं लेकिन चिंता किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकती। चिंता हमारी सोचने की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है और यही अवरोध हमारे दुखों का मूल कारण बनते हैं। चिंताग्रस्त व्यक्ति एक बार नहीं अनेक बार मरता है। वह एक बार नहीं आजीवन जलता रहता है।


किसी भी समस्या के आ जाने पर उसके समाधान के लिए विवेकपूर्ण निर्णय ही चिंतन है। चिंतनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई मार्ग अवश्य मिल भी जाता है। उसके पास विवेक है और वह समस्या के आगे से हटता नहीं बल्कि डटता है। समस्या के आगे डटना, समस्या का डटकर मुकाबला करना ही आधी सफलता प्राप्त कर लेना है।


आप अगर आध्यात्मवादी हैं तो फिर चिंतन करिए उस पावन प्रभु का जो बिन चाहे ही हम आप सब की चिंताओं का हरण कर लेते हैं। सच कहूं तो प्रभु नाम में विश्वास से बढ़कर कोई श्रेष्ठ चिंतन नहीं और चिंता का निवारण भी नहीं है।


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Saturday 8 April 2023

Famous quotes about Hinduism

 Have you read these lines by Western geniuses.?

1.  Michael Nostradamus (1503-1566)
"Hinduism will become the ruling religion of Europe.  The famous metropolis of Europe is the Hindu capital".

2.  Johann Keith (1749-1832)
If not today, one day we will have to accept Hinduism.  Because that is the true religion".

3.  Leo Tolstoy (1828-1910)
"Hinduism and Hindus will one day rule this world because it is a mixture of KNOWLEDGE AND WISDOM."

4.  Houston Smith (1919)
Hindutva is not more trusting than we have in ourselves
If we can turn our thoughts and hearts towards Hindutva, it will benefit us"

5.  Costa Loban (1841-1931)
"Hindus only talk about peace and reconciliation.  I invite Christians to praise, change and believe in it".

6.  Herbert Wells (1846-1946)
"How many generations are going to face atrocities and murders until Hinduism is well understood.?
But the world will one day be inspired by Hindutva.  Only on that day will the world become a place for humans to settle and live."

7.  Bernard Shaw (1856-1950)
"One day this world will accept Hinduism. Refusing to accept the true name of Hinduism will only make one accept its principles.
Western nations will surely one day convert to Hinduism.  The religion of the learned is equal to that of Hinduism".

8.  Albert Einstein (1879-1955)
"He (?) Does what the Jews cannot do. He did it with knowledge and energy."
"But only Hinduism has the power to lead to peace".

9.  Bertrand Russell (1872-1970)
"I read about Hinduism.  I feel that this is the religion of mankind all over the world.  Hinduism spread throughout Europe.  Many scholars studying Hinduism will appear in Europe.  One day the situation will develop where only Hindus will lead the world".

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